दिवाली पर बकरीद क्यों आया विवादों में…

नई दिल्ली: (शायन अस्कर) दिल्ली में पटाखों पर बैन था। इसका कुछ असर भी पड़ा लेकिन पटाखों से आजादी नहीं मिली। नतीजा यह हुआ की दिवाली की रात से ही दिल्ली की आबोहवा में ऐसा जहर घुला कि हवा को नापने के सारे पैमाने फेल हो गए है। एक्यूईआई 999 हो गया।

पटाखों के साथ पराली और गाड़ियों के धुएं ने सांस लेना मुश्किल कर दिया। दिल्ली वालों ने यूं तो इस बार भी पटाखों को लेकर थोड़ा खुद पर कंट्रोल रखा। लेकिन ये दिवाली भी बिन पटाखों के गुजरी हो ऐसा भी नहीं हुआ।

कुछ इलाकों में पटाखे चले और नतीजा ये कि दिवाली की रात से ही दिल्ली की हवा का जो स्तर गिरना शरू हुआ वो सुबह होते होते बेहद खतरनाक हो गया। दरअसल एक दिन पहले दिल्‍ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कहा था कि जो भी पटाखे फोड़ेगा उसके खिलाफ प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण अधिनियम के तहत कार्रवाई की जाएगी। इस अधिनियम के तहत 6 साल तक की जेल और एक लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है।

मंत्री के इतने कहले पर भी दिल्ली वालों ने जमकर पटाखे फोड़े, जिसकी वजह से हवा जहरीली हो गई। वहीं इस मामले में बीजेपी के नेताओं का कहना हैं कि सरकार धार्मिक मामलो में दखल न दे। कुछ लोग सोशल मीडिया पर लिख रहे है की यही अगर मुसलमान का त्योहार होता तो इस पर बैन लगाने की पूरी कोशिश की जाती।

उत्तर प्रदेश में कई जगह ऐसी हैं जहां बकरीद पर कुर्बानी नहीं होती। किसी अदालत ने, सरकार ने उन स्थानों पर कुर्बानी न किए जाने का कोई आदेश जारी नहीं किया है, बल्कि ‘सद्भाव’ के लिये गांव के लोगों ने बकरीद पर क़ुर्बानी न किये जाने का ‘समझौता’किया हुआ है।

यूपी के संत कबीर नगर जिले में एक गांव ऐसा भी है जहां बकरीद के मौके पर कुर्बानी नहीं होती। बकरीद के एक दिन पहले पुलिस सारे बकरे उठा ले जाती है। संतकबीर नगर जनपद का यह गांव मेंहदावल तहसील के धर्मसिंहवा थानाक्षेत्र में पड़ता है। पुलिस बकरीद के एक दिन पहले ही गांव में पहुंच जाती है और कुर्बानी के बकरों को कब्जे में लेकर गांव के पास बने एक मदरसे या सरकारी स्कूल में कैद कर देती है। त्योहार खत्म होने के तीन दिन बाद बकरे उनके मालिकों को वापस किए जाते हैं।

इस मामले पर जिले के आलाधिकारियों की नज़र रहती है। गांव में कोई हिंसा ना हो इसके लिए पुलिस बकरों को ले जाती है ताकि कुर्बानी पर लगी रोक बरकरार रहे। ईद उल अज़हा पर क़ुर्बानी करना मुसलमानों के इस त्योहार का अहम फ़रीज़ा है, लेकिन इस गांव में ‘समझौते’ के कारण यहां के मुसलमान क़ुर्बानी नहीं कर पाते।

यूपी में ऐसे और भी बहुत इलाक़े, गांव हैं, जहां कोई लिखित समझौता तो नहीं हुआ है, लेकिन सद्भाव की खातिर मुसलमान अपना वाजिब छोड़ने को भी राज़ी हो जाता है।

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