SC में गुजरात सरकार ने कहा-बिलकिस बानो के दोषियों की रिहाई को केंद्र ने दी थी मंजूरी

नई दिल्ली, बिलकिस बानो रेप केस के 11 दोषियों की रिहाई के खिलाफ दाखिल जनहित याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। अगली सुनवाई 29 नवंबर को होगी। याचिका में कहा गया है कि इस पूरे मामले की जांच CBI ने की थी इसलिए गुजरात सरकार दोषियों को सजा में छूट का एकतरफा फैसला नहीं कर सकती।

दोषियों को रिहा करने पर गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। गुजरात सरकार ने कहा है कि गृह मंत्रालय से मंजूरी मिलने के बाद ही दोषियों को रिहा किया गया है।

रिमिशन पॉलिसी के तहत सभी दोषियों को जेल से छोड़ा गया है। इस मामले में PIL दाखिल होना कानून का दुरुपयोग है। किसी बाहरी व्यक्ति को आपराधिक मामले में दखल देने का अधिकार कानून नहीं देता है, इसलिए याचिका खारिज की जाए।

हलफनामे में कहा गया है, “भारत सरकार ने 11 जुलाई, 2022 के पत्र के माध्यम से 11 कैदियों की समयपूर्व रिहाई के लिए सीआरपीसी की धारा 435 के तहत केंद्र सरकार की सहमति से अवगत कराया।  हलफनामे में यह भी कहा गया है कि राज्य सरकार ने सात अधिकारियों – जेल महानिरीक्षक, गुजरात, जेल अधीक्षक, जेल सलाहकार समिति, जिला मजिस्ट्रेट, पुलिस अधीक्षक, सीबीआई, विशेष अपराध शाखा, मुंबई, और सत्र न्यायालय, मुंबई की राय पर विचार किया।

दायर हलफनामे के मुताबिक, राज्य सरकार के अनुमोदन के बाद 10 अगस्त, 2022 को कैदियों को रिहा करने के आदेश जारी किए गए। इस मामले में राज्य सरकार ने 1992 की नीति के तहत प्रस्तावों पर विचार किया, जैसा कि अदालत द्वारा निर्देशित किया गया था और ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के हिस्से के रूप में कैदियों को रिहा किया गया।

हलफनामे में कहा गया है कि सभी दोषी कैदियों ने आजीवन कारावास के तहत जेल में 14 साल से अधिक पूरे कर लिए हैं। संबंधित अधिकारियों की राय 9 जुलाई 1992 की नीति के अनुसार प्राप्त की गई और गृह मंत्रालय को 28 जून, 2022 दिनांकित पत्र भेजकर केंद्र से अनुमोदन/उपयुक्त आदेश मांगा गया था।

वहीं राज्य सरकार को सीआरपीसी की धारा 432 और 433 के प्रावधान के तहत कैदियों की समयपूर्व रिहाई के प्रस्ताव पर निर्णय लेने का अधिकार है। हालांकि, धारा 435 सीआरपीसी के प्रावधान पर विचार करते हुए उन मामलों में भारत सरकार की मंजूरी प्राप्त करना अनिवार्य है, जिनमें अपराध की जांच केंद्रीय जांच एजेंसी द्वारा की गई थी। सीबीआई और राज्य सरकार को भारत सरकार से  उपयुक्त आदेश प्राप्त हो गए थे।

गुजरात सरकार की प्रतिक्रिया माकपा की पूर्व सांसद सुभासिनी अली, पत्रकार रेवती लौल और प्रो. रूप रेखा वर्मा द्वारा दायर एक याचिका पर आई है, जिसमें बिलकिस बानो के साथ सामूहिक दुष्कर्म और कई हत्याओं के लिए दोषी ठहराए गए 11 लोगों की रिहाई को चुनौती दी गई है। साल 2002 के गुजरात दंगे के दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली एक अन्य याचिका तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा ने दायर की थी।

सरकार ने हलफनामा में कहा है कि आजादी का अमृत महोत्सव के तहत इन कैदियों को छोड़ा गया है।

गुजरात सरकार ने याचिकाकर्ताओं द्वारा किए गए हर दावे का खंडन किया और कहा कि यह याचिका कानून में चलने योग्य नहीं है और न ही तथ्यों के आधार पर मान्य है। हलफनामे में कहा गया है, “याचिकाकर्ता के एक तीसरा अजनबी होने के नाते कानून के अनुसार सक्षम प्राधिकारी द्वारा दिए गए रिहाई के आदेशों को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है।

शीर्ष अदालत ने 9 सितंबर को गुजरात सरकार को आरोपियों की रिहाई से संबंधित सभी रिकॉर्ड दाखिल करने का निर्देश दिया था। इसमें राज्य सरकार को 2 सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था और कुछ आरोपियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ऋषि मल्होत्रा को भी जवाब दाखिल करने के लिए कहा था।

बिलकिस बानो मामले के एक दोषी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि गुजरात सरकार के माफी आदेश को चुनौती देने वाली याचिका ‘अटकलबाजी और राजनीति से प्रेरित’ है। राधेश्याम भगवानदास शाह द्वारा दायर याचिका में कहा गया है, “इस अदालत को इस तरह की सत्ता और राजनीति से प्रेरित याचिका को खारिज कर देना चाहिए और एक अनुकरणीय अर्थदंड लगाया जाना चाहिए, ताकि इस तरह के राजनीतिक अजनबियों द्वारा प्रेरित याचिका को भविष्य में प्रोत्साहन न मिल पाए

 

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